क्या देह की सीमा उसकी काफी थी?
मूक संवाद करती कभी नही आधी थी।।
तन में प्रेम का स्रोत जम गया फिरभी।
चेतना की हर साँस उसकी प्यासी थी।।
आत्मा की गहराईयों में मिलन करती।
स्वप्नों में खामोशी की सच्ची साथी थी।।
आकर्षण का जादू आज भी कायम।
दिल की धड़कनो में मथुरा-काशी थी।।
बहती नदी किनारे छूती रहती 'उपदेश'।
मन की सरहदों के अन्दर काफी थी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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