यूँ तो अल्लाह-अल्लाह,राम-राम रटते रहते हो
तब याद नहीं आता जब फूलों को मसलते हो
जगाओ ज़मीर, नापाक न कर लहू अपने
हर फूल अपनी हीं क्यारी का क्यूँ नहीं समझते हो
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तब याद नहीं आता जब फूलों को मसलते हो
जगाओ ज़मीर, नापाक न कर लहू अपने
हर फूल अपनी हीं क्यारी का क्यूँ नहीं समझते हो