तेज़ हवा में तन्हा पेड़
तेज हवा में, पेड़ भी रो रहा था।
खुद से उम्मीदें, वो जोड़ रहा था।।
उसे भी थोड़ा, तन्हा-तन्हा लग रहा था।
वो हवा से संभले कैसे, सोच रहा था।।
जड़ भी साथ छोड़ रही थी उसकी।
वो अकेले हवा से लड़ता रहा था।।
आंसु भी गिरे, वो बहुत तड़प रहा था।
संदर भी भर गया, उसके आंसुओं से...।।
डाली भी बोली, कब तक टिकूंगी यहां।
कुछ करो ज़रा, चीख-चीखकर रो रहा था।।
धरती से जड़ भी बाहर में आ गया।
वो भी धीर-धीरे अब मर रहा था....।।
तन्हा होकर हार मान ली उसने भी।
अब वो जिंदगी जीना भूल रहा था।।
- सुप्रिया साहू