कभी कभी कोई रिश्ता हम पर इतना हावी रहता है।
कि हम अपनी जिंदगी जीना भूल कर गुनगुनाने लग जाते और वो नहीं कर पाते जो हमें पसंद होता है।
यही सोच कर गुमसुम रहते कि उसे कहीं बुरा न लग जाए जबकि उसे कोई परवाह नहीं होती।
ऐसे रिश्ते से जब कभी बाहर आ जाते है तो जिंदगी कितनी हल्की महसूस होती है मगर यादे रह जाती।
तरह-तरह की मोहब्बत...तरह-तरह की इबादत
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद