क्या करुँ कि वो मुझसे न दूर है न पास है
निर्निमेष नज़र द्वारे पे पर मिलन की न आस है
शाम की सुहानी हवा घर में आई है महकी-महकी
शायद उनकी गलियों से है आई तभी लगा ख़ास है
क्यूंँ गुजरना पड़ता है ज़िंदगी में ऐसे रहगुज़र से
जहांँ किसी न किसी मोड़ पर सबके जीवन में काश है
वो कहते हैं सब भूल जाओ मगर ये आसांँ तो नहीं
दिल से कहांँ निकलता है बसा जो एहसास है