"ग़ज़ल"
मैं आशिक़ के दिल की सदाओं का शायर!
मैं हसीनों की क़ातिल अदाओं का शायर!!
मैं दीवाना हूॅं सिर्फ़ क़ुदरत का यारों!
ये चाॅंद ये सूरज घटाओं का शायर!!
ये पहाड़ ये झरनें ये पेड़ों की क़तारें!
वादियों की मैं दिलकश फ़िज़ाओं का शायर!!
शान-ए-इश्क़ में मैं ने क़सीदे लिखे हैं!
मैं हुस्न के सितम-ओ-जफ़ाओं का शायर!!
ये क़लम लिखना चाहे क़ुर्बानी पिता की!
दिल से निकली हर माॅं की दुआओं का शायर!!
'परवेज़' इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं!
मैं प्यार मोहब्बत वफ़ाओं का शायर!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad