जब भी तन्हा होते हैं कागज़ और कलम पकड़ लेते हैं,(2)
जब भी तन्हा होते हैं वो चार दोस्त हमेशा मेरे साथ होते हैं।
अब सोच रहे होंगे कि कौन है वो खुशनसीब तो सुनो......
वो कागज़,कलम,किताब और मेरी नज़्म होते हैं।
तन्हा अफ़साना हमारा,
तन्हा ये दिल हमारा।(2)
तन्हा ज़िंदगी में कोई नहीं हमारा,
बस कागज़ और कलम है हमारा।
तन्हाई में अक्सर नज़्में निकलने लगती है अंदर से, लिख देते हैं कागज़ पर कलम से।
तन्हा-तन्हा हम है,(2)
तन्हाई में मेरी आवाज़ मेरी नज़्म है।
जिसे कागज़ को कलम से कहती हूॅं....
इस तन्हा ज़िंदगी में यही मेरे साथी है,
जिनसे खिली-खिली में रहती हूॅं।
~रीना कुमारी प्रजापत