याद करती रही मैं तुम्हें उम्र भर,
पर तुने मुझे कभी याद किया नहीं।
थक गई मैं तुझे बुलाते -बुलाते,
पर तु आज तक आया नहीं।
हर गुफ़्तगु में शामिल मैंने किया तुम्हें उम्र भर,
पर तुमने किसी भी गुफ़्तगु में मेरा ज़िक्र किया नहीं।
दास्तां तुम्हारी सुनाती रही गली-गली,
पर मेरी दास्तां को तुमने कभी सुना नहीं।
दुआ करती रही मैं तेरे लिए उम्र भर,
पर तुमने अपनी दुआ में शामिल मुझे कभी
किया नहीं।
अपना समझती रही मैं तुम्हें,
पर तुमने मुझे कभी अपना समझा नहीं।
हजारों दर्द के बावजूद भी तेरे लिए झूठी हॅंसी
दिखाती रही उम्र भर,
पर तूने मुझे कभी हॅंसाया नहीं।
कितनी ठोकरें खाई मैंने तुझसे मिलने के लिए,
पर तुमने मुझे कभी संभाला नहीं।
चाहती रही मैं तुम्हें उम्र भर,
पर तुमने मुझे एक भी पल चाहा नहीं।
रुसवा होती रही मैं तुम्हारे लिए,
पर तुमने कभी मुझे मान सम्मान दिया नहीं।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️