स्वाभिमान होता होगा दोनों में मगर।
प्यार में छल करेगा दुत्कारेगा जिगर।।
कहते इंसान पर जीता कौन प्रेम बिन।
छलिया भी छला गया जिक्र जरा कर।।
सृष्टि चल रही सृष्टिकर्ता के सिद्धांत से।
इंसान पेच फंसा रहा फिजूल तर्क कर।।
औरत का स्वाभिमान होता शक्तिशाली।
प्रेम में कुर्बान करती आई न तर्क कर।।
प्रेम की आग में झोंका जिसने 'उपदेश'।
बदल जाता मन मस्तिष्क न तर्क कर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद