उसे क्या पता था पतंग उड़ा रहा था वह भी।
वफ़ा के आसमान में कट जाएगी बेवजह भी।।
हवा का रुख कब बदला न किसी ने इत्तला दी।
बस देखते भर रह गया न बताई गई वज़ह भी।।
उनके रहमोकरम पर नाजिर हो गए जाने कब।
साँसों का कारोबार रोका न बताई गई वज़ह भी।।
होगी कोई नीति मुझको कोई इल्म नही 'उपदेश'।
सियासत के खेल में फ़ना न बताई गई वज़ह भी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद