देखना है भारत तो
ज़रा ट्रैफिक सिग्नल पर जाओ ।
मेट्रो बस स्टैंडो पर जाओ प।
चौक चौराहों नुक्कड़ फाटकों पर जाओ।
दिख जायेगा इंक्रेडेबल इंडिया ।
हजारों मायूस आँखें तुम्हें हीं ढूंढती मीलेंगी।
हजारों खाली हाथ तुम्हारे हीं तरफ़ उढ़ती मिलेंगी।
सब हीरोगिरी जोश फीकें पड़ जायेंगें।
रात को अपनी लक्जरी गाडियां
बड़े बड़े बारों के ठीक सामने लगाना
जितनी में तुम्हारी एक सिप शराब होती हैं न उससे भी कम दाम में भूख सड़कों पर औंधातीं मिलेगी.....
सारा नशा चूर हो जायेगा।
आज़ादी के वर्षों बाद भी तमाम कोशिशों के बावजूद भी भारत से भय भूख गरीबी भ्रष्टाचार भागायीं जा नहीं सकीं हैं।
अमीरों और गरीबों की परिपाटी भी नहीं पाटी ना जा सकीं हैं।
देखना उन छोटे छोटे नंगे धुल धूसरित
बच्चों को उनमें तुम्हें भारत का भविष्य दिख जायेगा।
मौत को गले लगाते किसानों मजदूरों में देखना।
लाचार बेकार बैठे मिडिल क्लास के युवाओं को देखना।
दिख जायेगा इंक्रेडेबल इण्डिया।
यहां रिफॉर्म के नाम पर पॉलिटिकल पार्टियां ख़ुद का रिफॉर्म कर रहीं हैं।
सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा करने में लगीं हैं।
आम आदमियों के लिए किसी को यहां ख़ाक पड़ी हैं।
यहां पाप का पल पल उत्थान
पुनर्जागरण कदम कदम पर पदार्पण हो रहा है।
पुण्य का पल पल विसर्जन हो रहा है।
अरे कोई तो आओ
भारत को बनाओ
गरीबों भूखों को गर्दिशों से बचाओ।
इन गरीबों का बेसहारों का सहारा बन जाओ।
अरे मत भूलो भारत गांवों का किसानों का मजदूरों का भी देश है।
जब तक हरेक आम आदमी खास नहीं हो जाता।
भारत खास नहीं हो सकता।
भारत को खास बनाना है तो
सब में आस जगाना होगा ।
अंधियारे से निकल कर सबको उजालों में लाना होगा।
सबके लिए मन सम्मान शिक्षा भोजन वस्त्र आवास बनाना होगा।
फिर सूरज से ज्यादा चमकेंगे हम
तभी विश्वगुरु बन पायेंगे हम..
तभी विश्वगुरु बन पायेंगे हम....