कितना भोलापन और कितनी मासूमियत हैं !
ये सुबह की किरणों में कितनी नज़ाकत हैं !!
लाल लाल गुलाबी रंगो की,अदभुत बनावट हैं !
स्पर्श करें तनमन को तो, लगे कोई जादू है !!
धीरे से वो आती धरा पर,चुपके से पांव रखे हैं !
प्रकृति संग मौसम अनायास,करवट बदले हैं !!
पशु-पक्षी,पैड-पौधे,ऊर्जा के स्रोतमें नहाते हैं !
देख सारी मस्ती,हवा बादलों साथ नाचे हैं !!
नदी-पर्वत झरने सागर,वो कभी कहां सोते हैं !
हजारों करुणा और, निःस्वार्थ सेवा करें हैं !!
ए नादान मानव उठ,सतेज हो तुझे वो पुकारें हैं !
आलस त्याग परिश्रम कर,प्रेरणा तुझे देते है !!
सोच समझ रचना रब कि,व्यस्तता ही सहारा हैं !
बिन काम काज रिश्तोंमें,उलझने ही उलझनें हैं !!
चार दिन की रौनक फिर,कौन देश उड़ जाना हैं !
जो भी सांस बची,सेवा कर्म 'रब' स्तुति 'श्रेष्ठ' हैं !!