अब मुझे किसी से दिल लगाना नहीं है
चोटें खाई बहुत अब खाना नहीं है
उल्फ़त की राह में सिर्फ तन्हाई मिलती है
तन्हाई में अश्क बहाना नहीं है
गम-ए- दर्द में लगे सब है धुआँ-धुआँ
जैसे मेरा कहीं कोई ठिकाना नहीं है
सब्ज़-बाग़ हैं दिखाने वाले आशिक़ बहुत
मगर मजनूँ सा कोई दीवाना नहीं है
अब मोहब्बत कहाँ पाक होती है 'श्रेयसी'
राधे-कृष्ण का जमाना नहीं है