कैसी व्यवस्था भारत की,
....हम महान होकर भी पिछड़ गए,
जो थे कोसो दूर हमसे,
....वो हमसे आगे निकल गए (2),
क्या व्यंग करूं भ्रष्टाचार पर (2),
....हर तंत्र यहां बिका हुआ,
मुझे लगता है इसी के खातिर ,
....हम दुनिया से पिछड़ गए (2),
हमारी सभ्यता कभी अव्वल थी,
....हमने ही जीवन का मार्ग दिया,
हमने दी विद्या तप की ,
....हमने ही मोक्ष का ज्ञान दिया,
लेकिन आज कहाँ हैं हम,
....कभी सोचो तुम विचार करो (2),
मिलकर आज लो प्रण सपथ,
....महान भारत का निर्माण करो,
........निर्माण करो .........(2),
कवि राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है