जब ऐसे लोग भी
प्रोफेसर बन सकते हैं
तो मुझमें तो उनसे बेहतर कुछ है
फिर मुझे भी बनना चाहिए!
पर अब समझ आ रहा है—
वो बन गए...
और बनते जा रहे हैं—
धन, प्रभाव और सम्बन्धों के सहारे
और इधर मैं—
पढ़ते-पढ़ते
मेहनत करते-करते
थक कर चूर हो चला हूँ।
ऊपर से
परिवार, रिश्तेदार, समाज की बातें—
जेब में खालीपन
मन में सिर्फ़ चिन्ता
तनाव... और
सम्मान बचाए रखने की व्यथा।
फिर भी लगे हैं हम—
कि इस डरावनी महंगाई से
बचा सकें अपने
परिजनों और मित्रों को।
बस चाह है
कुछ अच्छा कर जाने की—
समाज के लिए
देश के लिए
और मानवता के लिए।
देखते हैं... आगे क्या होता है—
आशा है, अच्छा ही होगा—
जब तक श्रीहरि का साथ है
और मेरा मन सच्चा इरादों से भरा है।
प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




