जाति-पाति में मत उलझो,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
सिर के ऊपर सूरज तपता,
तो पाँव के नीचे छाँव बराबर।
चमड़े का है रंग अलग,
पर लहू एक जैसा ही हैl
खुशी महसूस बराबर होती ,
महसूस होता हर घाव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
भावना एक जैसी अपनी,
और सच मे भाव एक ही हो।
एक दूसरे के साथ चलें,
और हमारा लगाव एक ही हो।
दोनों मिल पतवार चलाएंगे ,
तो चलेगी अपनी नाँव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो ,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
आज नया रूप रंग है,
पर एक शरीर के हिस्से हैं।
हमारा लहू एक ही है ,
हम नहीं पुराने किस्से हैं।
शरीर भले बिचलित होता ,
पर मन का है ठहराव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो ,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




