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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जाति -पाति

जाति-पाति में मत उलझो,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
सिर के ऊपर सूरज तपता,
तो पाँव के नीचे छाँव बराबर।

चमड़े का है रंग अलग,
पर लहू एक जैसा ही हैl
खुशी महसूस बराबर होती ,
महसूस होता हर घाव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।

भावना एक जैसी अपनी,
और सच मे भाव एक ही हो।
एक दूसरे के साथ चलें,
और हमारा लगाव एक ही हो।
दोनों मिल पतवार चलाएंगे ,
तो चलेगी अपनी नाँव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो ,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।

आज नया रूप रंग है,
पर एक शरीर के हिस्से हैं।
हमारा लहू एक ही है ,
हम नहीं पुराने किस्से हैं।
शरीर भले बिचलित होता ,
पर मन का है ठहराव बराबर।
जाति-पाति में मत उलझो ,
रहना है हमें हर ठाँव बराबर।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Arpita pandey said

बहुत सुंदर प्रस्तुति आपको सादर नमन

Updesh Kumar Shakyawar said

अच्छी रचना के साथ नमस्कार siddharth जी

सिद्धार्थ गोरखपुरी said

आप दोनों को सादर धन्यवाद 🙏

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