कविता : नरक....( a.p.)
जिंदगी में आप के साथ बोलना था
आप के साथ चलना था
आप के साथ निकलना था
आप के साथ उछलना था
आप के साथ मचलना था
आप के साथ ढलना था
आप के साथ बदलना था
आप के साथ संभलना था
मगर हम न आप के साथ बोल सके
न आप के साथ चल सके
न आप के साथ निकल सके
न आप के साथ उछल सके
न आप के साथ मचल सके
न आप के साथ ढल सके
न आप के साथ बदल सके
न आप के साथ संभल सके
मेरे पास आप का ना होने से
अब मुझे क्या फायदा रोने से ?
मेरी हर चीज नदी में ही बह गई
जिंदगी एक नरक बन कर रह गई
जिंदगी एक नरक बन कर रह गई.......