'सिर्फ तुझे चाहा है'
सर से ले के पाँव तक,
धूप से ले के छाँव तक,
शहर से ले के गाँव तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
भूख से ले के प्यास तक,
नाउम्मीदी से ले के आस तक,
दगा से ले के विश्वास तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
खुशी से ले के गम तक,
प्रतिज्ञा से ले के कसम तक,
बेवफा से ले के सनम तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
धरती से ले के आसमान तक,
जिंदगी से ले के जान तक,
मन्नत से ले के अरमान तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
सृजन से ले के कहर तक,
लम्हें से ले के पहर तक,
अमृत से ले के ज़हर तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
तिनके से ले के घास तक,
तम से ले के उजास तक,
गंध से ले के 'सु-बास' तक,
सिर्फ तुझे चाहा है।
🖋️सुभाष कुमार यादव