जाने क्यों शक करते लोग औरत जात पर।
हर बात पर लोग आते अपनी औकात पर।।
अब कहाँ जाऊँ छोड़कर आई बाबुल का घर।
कर्ज में डुबा दिया मैंने ही तुम्हारी बारात पर।।
मेरे हक में अँधेरे घिर आए उजाले के बाद भी।
कुछ करीबी लोग खुश लग रहे मेरी मात पर।।
जो नही रोई थी कभी कमरे में तन्हा बैठकर।
आज लिखने को मजबूर ग़ज़ल बरसात पर।।
जिसको सूरज समझा अस्त होने को आ गया।
काबू रहेगा क्या 'उपदेश' इस अँधेरी रात पर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद