जो ना हो सूकूँ तो रास्ते क्या, मिले मंजिलें तो क्या..
चमन में टूटे दिल की खातिर, कोई गुल खिले तो क्या..।
उनकी निगाहों में, हमारी वो तवज्जो ना रही तो..
फिर उनके दर पर सज़े, हज़ार महफिलें तो क्या..।
गर कदमों में नहीं, हौसला–ए–खूं मचल रहा..
तो खुली आंखों के रूबरू लुट गए काफ़िले तो क्या..।
बदला हुआ मिज़ाज़, ही अब उनकी हकीकत है..
फिर रुकी हुई बातों के, चल भी जाएं सिलसिले तो क्या..।
वो इन आंसुओं की वज़ह थे, जाने इसकी वजह क्या थी..
वो अनजान बनकर अब हमसे, हंस हंस के मिले तो क्या..।