हरी भरी वसुंधरा की गोद में
झूम रहे हैं विटप कोने कोने में
ये ऋतु चक्र का कुछ अनूठा नाद है
मन को तरंगें छू रही,आत्मा को भी सुकून है।
सुदूर क्षितिज के पार आज जलसा है
उमस गई, गर्मी गई, कंटक सब विलीन हैं
जो शीश जले थे गर्मी में
आज उनके माथे बरखा का ताज है।
नीड से निकल रहे खग की टोलियां
विचारशील हैं मधुर मधुर ध्वनियां
ये बहार ये वर्षा का नाच है
कहकाशाओं को सजा रही ये प्रकृति जा जादू है।
प्यासे उपवानो के झीलों से
आज झांक रही है सजल कथाएं
किसानों ने आज दुलारा है जमीन को
कागज़ की कश्तियां भी आज निकल पड़ी।
शिव शक्ति की कृपादृष्टि है
पिंचधर भी आज जैसे मुस्का रहा
ये दामिनी की गूंज संदेश दे रही
खुशियों का वक्त आ चुका ।
-श्रद्धा व्यास