विपदा ऐसी छाई की मनुष्य हार गया,
जीत न पाया तो ,कोहरा छा गया ।
दूर से देख रहा था अपने मन को, निर्जीव बना जा रहा,
धड़कने गिने जा रहा,
सन्नाटा बराबर एकटक निहारे,घना विपीन छा रहा।
थोड़ा चंचल हुआ तो, हृदय कांपा जा रहा।
दरवाजे पर खड़ा कोई दुःख, धैर्य रखा जा रहा;
सुख गया तो, दुःख साथी बन आया,
विश्वास अपना बनाएं जा रहा,
एकता इतनी की ठोकरें खा रहा।
पर हर पल साथ दिया जा रहा।
अन्तिम पलों में अपने चरम पर जा रहा,
विपदा को देख मनुष्य मुस्कुरा रहा ।।
- ललित दाधीच।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




