नैतिकता का घाट,
डूबा सागर में।
रिश्वत का कारोबार,
फैला है चारों ओर।
कानून का राजा,
लेता है रिश्वत।
बेचारा जनता,
रोती है बेबस।
धन की प्यास ने,
मिटाया इंसानियत।
रिश्वत का चक्र,
चल रहा है लगातार।
अधिकार के लिए,
देना पड़ता है दाम।
नहीं तो रह जाता है,
अधूरा काम।