भरोसे वाले लोग ही दीवार बन बैठे।
रिश्ते नाम के ही रहे चादर तान बैठे।।
जिसके पकड़ते ही चूडी कुनकुनाई।
सबब न समझ पाये शिकार बन बैठे।।
अब गम बताना तमाशा सा लगेगा।
अपनों की सोहबत में जहर बन बैठे।।
हँसते हुए शहीद बनाये गये 'उपदेश'।
मुकरने की सजा के आधार बन बैठे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद