कविता - आप के लिए....
हम आप के लिए....
कभी जिए
कभी मरे
कभी उठे
कभी गिरे
हम आप के लिए....
कभी फंसे
कभी हंसे
कभी घिसे
कभी पिसे
हम आप के लिए....
कभी लूटे
कभी कुटे
कभी पीटे
कभी मिटे
हम आप के लिए....
कभी बैठे कभी
हुए खड़े
कभी भिड़े कभी
फिर लड़े
हम आप के लिए....
कभी कहीं
जा कर रगड़े
कभी कहीं
जा कर झगड़े
हम आप के लिए....
कभी कुछ कभी
कुछ करते रहे
कभी इधर कभी
उधर मरते रहे
हम ने आप के लिए....
सारा जी जान
लगा दिए
आप को क्या हम ने
क्या क्या न किए
मगर आप हो की अपनी
नजर फेंकती भी नहीं
हमारी ओर इशारा
कर देखती भी नहीं
हमारी ओर इशारा
कर देखती भी नहीं.......