सकुच सजल पाटल पुष्पों पर,
गिरी संवेदना मृदु कणों पर।
जीवन जगत की नव ज्योति सुधा,
सुर संगीत सम गर्वित उषा।
नन्हीं नीली आंखों की प्याली,
जगी कुमुद केशव कोमल फुलवारी।
किया क्रय किसने तम का,
शीत रजनी के किसलय दल का।
सुन आज मधुर मीठी गान,
भर आई वेदना लिए करुण सौगात।
आकुल प्राणों का साथी अंधेरा,
प्रतीक्षारत पिघलता पीर सवेरा।
गिन यादों को कंपित अंगुलियों पर,
रात के उर को समेटे हथेलियों पर,
फैली उज्ज्वल उदित उष्ण उजियारी,
खोई शून्य में कहीं शापमय चिंगारी।
_ वंदना अग्रवाल "निराली"