नीलांबर सा व्योम ओढ़े,
नाभि में नाद समाए,
शिव खड़े हिम-शिखर पर
जैसे ध्यान स्वयं बन जाए।
गंगाधर के शीतल तन पर गंगा भी गुनगुनाती,
जल की लहरें जैसे जप-माला बन शिव-पद गिन जाती।
डमरू की नाद-नाद में नाद छिपे अनंत,
जटाओं में बहती उजली धारा,
जैसे प्रभु की शांति का सागर हो किनारा।
त्रिनेत्र की ज्वाला जब बरसी,
अंधकार भी प्रकाश बना,
सृष्टि बोली –
“हे शंभु! विनाश में भी विस्तार तेरा ही बना”
चंद्र शिखर पर बैठा है जैसे
रात का कोमल स्पर्श,
शिव के मस्तक पर पाकर ठौर —
स्वयं समय भी होता मर्ष।
नागों की माला—
जैसे भय को ही गले लगाकर
भय को निडरता की शिक्षा देना
जग का सबसे बड़ा आधार।
वृक्षों के पत्ते, पवन के झोंके,
हर कण मंत्र उचारे,
“हर-हर” की ध्वनि में हर दुःख हर ले—
यही है शिव,
जो अहंकार को भी राख कर डालें।
कैलास शिखर हँस पड़ता है,
जब नटराज का चरण उठे,
जैसे ब्रह्मांड की धड़कन भी
उनके ताल पर चल उठे।
ओ महादेव!
तेरा नाम ही ऐसा—
“शिव”
जहाँ शिव शुभ भी, शिव मुक्ति भी,
और शिव वह शांत क्षण—
जिसमें मन अपना घर पा ले।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







