"ग़ज़ल"
बादल भी समन्दर पर ही टूट के बरसे!
सहरा का ये आलम कि दो बूॅंद को तरसे!!
रोटी का मसला था तलाश में रोज़ी के!
वापस ही नहीं लौटा निकला जो वो घर से!!
दिल बारहा कहता है वो न लौट के आएगा!
ऑंखें हैं कि चिपकी हैं आज भी दर से!!
सच्चाई का रस्ता था काॅंटों से भरा लेकिन!
मैं चलता रहा उस पे अल्लाह के डर से!!
मिलता है सुकूॅं फिर तो मौत की बाहों में!
उठ जाए यक़ीं जिस दम ज़िंदगी पर से!!
गिर कर कभी 'परवेज़' वो उठ नहीं सकता!
जब आदमी गिर जाए ख़ुद अपनी नज़र से!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




