उधर भीड़ में चलें, देखें, आख़िर मसअला क्या है..
कुछ तकरीर कुछ तकरार, वहां और भला क्या है..।
अपनी अपनी हैसियतों की, बोलियां हैं लग रही..
जान की बाज़ी है, तो नहले पे दहला क्या है..।
मुद्दे वही, किरदार वही, और जंग–ए–मैदान भी वही..
हाथ वही, नश्तर वही, तो ज़माने में बदला क्या है..।
आंधियों का गुब्बार, आसमां से उतर ही गया जो..
फिर हर तरफ़ सब कुछ, इतना धुंधला क्या है..।
दिल में ज़रा भी अब जगह, बाकी नहीं जो आपके..
फिर ये मनाने और मानने का सिलसिला क्या है..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




