मेरी पीड़ा की कल्पना करो,
अपने ही घर में, मैं सौतेली।
मुझसे ही करते भाव व्यक्त,
मैं ही तुम्हारी हम – जोली।
मेरा स्थान दिया अन्य को,
लज्जित हो बोल मातृ बोली।
मैं हिंदी हूँ, भाल की बिंदी हूँ,
सृजनात्मक स्वरूप खड़ी-बोली।
मानवता, संस्कृति, सभ्यता,
सिखाने वाली मैं ही अलबेली।
कर ग्रहण दिया अपना ही रूप,
अपनी अस्मिता को तलबेली।
मेरी पीड़ा की कल्पना करो,
अपने ही घर में, मैं सौतेली।
गुरुदेव ने कहा था एक बार,
हिंदी न दे आपको धन-धान्य,
पर पा सकोगे मनुज का हृदय,
पर्याप्त मिलेगा मान-सम्मान।
शत - शत नमन हिंदी भाषा,
पूरी करती प्रत्येक अभिलाषा।
🖊️सुभाष कुमार यादव