खुले हैं पंख बहुत देर से मगर ये उड़ते नहीं हैं
शहरी परिंदे हैं अभी आसमां से जुड़ते नहीं हैं
इन्हें तो शाख पे बैठे हुए देखने की है आदत
नजर गड़ी है सामने ये जरा भी हिलते नहीं हैं
जानते हैं खूब आसमान पर धुंआ है दूर तलक
बेहद शोर है इसलिए खुद ये चहचहाते नहीं हैं
कभी यहाँ पे एक जंगल था इनकी बस्ती थी
कटे हैं पेड़ दिल की ठेस अब ये भूलते नहीं हैं
हमें तो शक है कि दास कहीं ऐसा न हो जाए
जुड़े ना पंख कुछ इस तरह कभी खुलते नहीं हैंlI

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




