मेरे जीवन के दो स्वरूप,
एक का मैं,एक मेरा अनुरूप,
कितना मिलता रंग-रूप,
हम तीनों हो जैसे तद्रूप ।
दादा - पोता का चित्र,
दोनों का प्रेम बड़ा विचित्र,
परस्पर प्रथम-अंतिम मित्र,
दोनों ही मेरे जीवन के इत्र ।
तीनों है एक-दूसरे की जान,
एक से है दूसरे की मुस्कान,
एक - दूसरे में बसते प्राण,
एक के बगैर दूसरा निष्प्राण ।
दादा,पिता,पोता का क्रम,
यह है शाश्वत अनुक्रम,
नियत सब का पदक्रम,
सतत गतिमान वंशक्रम ।
🖊️सुभाष कुमार यादव