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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

इक़बाल सिंह “राशा” की कविता “थक चुका हूँ मैं”

थक चुका हूँ मैं
इन गलियों में,
जहाँ हर चेहरा
धुंधली परछाईं-सा
मेरे भीतर उतर आता है।

साल पर साल गुज़र गए—
जैसे टूटी माला के मनके
धरती पर बिखरते हों,
और मैं अब भी
अपना ही धागा खोज रहा हूँ।

मैं लौट जाना चाहता हूँ—
गाँव की झोपडी में,
पहाड़ों की ख़ामोशी में,
नदियों की धार में
जंगलों की गीली मिट्टी में,
जहाँ पत्ते
हवा से धीमे स्वर में
रहस्य कहते हैं।

मैं चाहता हूँ
अपने भीतर की जली हुई लकड़ी से
एक उजली राख बनाऊँ,
और उसी राख में
नए जीवन का बीज बो दूँ।

शहर की चिलचिलाहट
मेरी साँसें तोड़ देती है,
पर जंगल की नीरवता
मेरी साँसों को
फिर जोड़ देती है।

मैं अपने चारों ओर
एक ऐसा लोक गढ़ना चाहता हूँ
जहाँ धूप
पलकों पर ठहर सके,
और छाँव
मन की थकान उतार दे।

मैं अपनी हथेलियों पर
आकाश की नमी महसूस करना चाहता हूँ—
जैसे कोई अदृश्य स्पर्श
मुझे घर की ओर बुला रहा हो।

मैं अब घर लौट जाना चाहता हूँ।

-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना राशा सर। आपकी लेखनी को सादर नमन।👌👌🙏🙏

श्रेयसी said

वाह बहुत अच्छी ख्वाहिशें बहुत सुंदर लाज़वाब 🙏🙏

Lekhram Yadav said

आशा, विश्वास और निराशा का अद्भुत संगम, बहुत खूबसूरत रचना, सुप्रभात सहित सादर नमस्कार

वन्दना सूद said

जहाँ धूप
पलकों पर ठहर सके,
और छाँव
मन की थकान उतार दे।👌👌👏👏🙌🏻🙌🏻sir क्या कहने आपके हृदय स्पर्श करती रचना

पवन कुमार "क्षितिज" said

थक चुका हूं मैं के हर शब्द में एक ताजगी है राशा जी.. बहुत बारीकी से बुना है आपने संवेदनाओं का ये ज़ाल.. हम तो खुशी खुशी इसमें फंसते चले गए..👌👌

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

झोपड़ी, पहाड़, नदियां,गिली मिट्टी, अपने गांव की ओर खींची चली जाती मन की विव्हलता।मन शांति की तलाश में शहर से गांव जाने को तड़प रहा हो।राशा जी आपकी रचना के हर बंध में ऐसी भावनाएं भरी होती है जिसका पूरा विश्लेषण करना सूरज को दिया दिखाने के समान है। बेहद सारगर्भित कविता।👌👌👌🙏🙏

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