पेड़ों की हरियाली बचाओ,
धरती माँ को शीतल छायाओ।
नदियाँ कल-कल गाएँ गीत,
इनका ना हो कभी अपमान या जीत।
वायुमंडल हो शुद्ध, सुगंधित,
प्रकृति रहे सदा पावन, निर्मल, संचित।
ध्वनि, धूल और धुएँ से डर,
जीवन का घटे न स्वर।
पक्षी गाएँ, फूल खिले,
हर प्राणी सुख से यहाँ मिले।
न कटें वन, न सूखे नद,
बच्चों का हो उज्ज्वल कल।
कूड़ा-कचरा सही ठिकाने,
नदी-झील ना हो बेगाने।
प्लास्टिक छोड़ो, प्रकृति अपनाओ,
हरियाली का व्रत निभाओ।
चलो मिलकर प्रण ये लें,
धरती को स्वर्ग सम बना दें।
न होगा फिर कोई पछतावा,
जब हर जीव को मिलेगी छाया।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र
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