लावा उबलता है
शिवानी जैन एडवोकेटByss
सीने में धधकती आग है अब,
अन्याय की हर चोट गहरी है।
कब तक सहें हम यह घुटन भरी,
ज़िंदगी जो हर पल अँधेरी है?
लहू आँखों में उतर आया है,
अधिकारों का हरण देखा है।
अब चुप्पी तोड़नी होगी हमें,
यह अन्याय का घेरा रेखा है।
कमज़ोर समझकर जो रौंदते हैं,
हमारी आवाज़ से थरथराएँगे।
यह लावा जो भीतर उबलता है,
एक दिन ज्वालामुखी बन जाएँगे।
नहीं झुकेंगे, नहीं डरेंगे अब,
हर ज़ुल्म के आगे तन जाएंगे।
अन्याय की नींव हिला देंगे हम,
एक नया सूरज उगाएंगे।