सुबह कभी आती नहीं है पृथ्वी को घूर्णन करना पड़ता है जिसको लाना हो घोर उजाला अंतिम विचरण करना पड़ता है।
मान लो, तुम्हें ज़िंदगी ने बहुत बड़ा आघात दिया। तुम टूटे, बिखरे... पर फिर सोचा अब तुम्हें संभलना ही होगा, हाँ, तुम्हारे घाव वक़्त के साथ भरने लगे लेकिन उनके निशान आज भी तुम्हारे साथ हैं।
उन्होंने तुम्हें सिखा दिया कि तुम्हें संभलना है, पर किसी और के सहारे पर नहीं। तुम्हें अपनी मज़बूती खुद बनानी है।
तुम चाँद मत बनो 'उपदेश' जो किसी और की रोशनी में चमकता है। तुम सूरज बनो जो खुद जलकर, अपनी रोशनी से न सिर्फ़ अपनी दुनिया, बल्कि औरों की राह भी रोशन करता है।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद