तेलंगाना का मौन क्रंदन
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात "
कभी जहाँ हरियाली थी, वन्यजीवों का गान था,
तेलंगाना की धरती पर, अब पसरा वीरान था।
चार सौ एकड़ जंगल, पल में राख का ढेर हुआ,
प्रकृति का सुंदर आँचल, क्रूर हाथों से क्षत हुआ।
चहचहाती चिड़ियों का स्वर, अब सुनाई नहीं देता,
हिरणों की उछलकूद गुम, सन्नाटा गहरा खेता।
सैकड़ों बेघर जानवर, भटक रहे हैं बेदम,
खो दिया आश्रय अपना, आँखों में दिखता गम।
वह सिर्फ पेड़ों का गिरना नहीं, जीवन की साँसें टूटीं,
पारिस्थितिकी तंत्र की हर कड़ी, बेरहमी से छूटी।
मौसम का चक्र बिगड़ा, हवा भी हुई है भारी,
पानी की कलकल रुकी, मिट्टी भी हुई बेचारी।
हर गिरा हुआ वृक्ष, एक जीवनदायी श्वास था,
हर दूर हुआ वन्यजीव, प्रकृति का विश्वास था।
जंगलों का यह घटना, केवल भूमि का क्षय नहीं,
हमारे पर्यावरण पर गहरी, अमिट यह व्यथा बनी।
अब जागना होगा हमको, प्रकृति की कीमत पहचानें,
हरियाली और जीवन की रक्षा का लें प्रण ठानें।
आने वाली पीढ़ी को, सौंपें धरा हरी-भरी,
सुरक्षित और संतुलित हो, यह जिम्मेदारी है खरी।
एक वृक्ष लगाएं मिलकर, हर खोई सांस लौटाएं,
वन्यजीवों को फिर से उनका, खोया घर दिखलाएं।
प्रकृति का करें सम्मान, यही जीवन का आधार है,
तभी सुरक्षित रहेगा यह जग, यही सच्चा प्यार है।
तेलंगाना का यह मौन क्रंदन, हमें दे रहा संदेश,
प्रकृति से खिलवाड़ का, मिलता है दुखद अवशेष।
अब भी संभलें, जागे हम, करें प्रकृति का जतन,
वरना यह मौन चीत्कार, बदलेगा भीषण क्रंदन।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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