देखा तो कांप गया महलो के नजारो से
कश्ती को जलती देखि नदिया के किनारो से
ऐक ही चाहत पर मरते रहे जिंदगी भर
कभी उम्मीद नहीं की थी लाखों हजारो से
कितनी ही आजमाइश करे या जोर लगाये
पर कभी खुशिया मिलती नहीं बाजारों से
मजबूरियां पीघलती रही रातभर
कोई शम्मां जली नहीं इन दीवारों से
नजर लगातार देखती रही इन दरारों में
सुबह की रोशनी देखि धड़कते अरमानो से
के बी सोपारीवाला