गर जिंदगी की शाम है
खुद का हाथ थाम के
खुदी को सहारा दे दो
उलझनों से किनारा कर लो
औरों से है क्यों बाॅध रहा
उम्मीदों की ये ङोर
अन्धेरों से क्यों भय पाला
फिर फिर आयेगी भोर
हर उम्र में हसीन है जिन्दगी
खूबसूरती का नजारा कर लो
खुदी को सहारा दे दो
उलझनों से किनारा कर लो
चित्रा बिष्ट