उतार दिया खुद को जब रण में,
....तब संघर्षों के डरना क्या,
बिन लडे गर बीता जीवन,
....उस जीवन का फिर करना क्या,
युद्ध तो है सबके जीवन में,
....युद्ध का दूसरा नाम है जीवन(2),
ना हो जहाँ काँटे और पत्थर,
....उस पथ पर फिर चलना क्या(2),
उतार दिया खुद को जब रण में,
....तब संघर्षों के डरना क्या(2)
पतझड़ और सावन ये रुत जीवन के,
....फिर संध्या की बेला क्या(2),
क्या है जिसका नाम ये जीवन,
.... फिर संघर्षों का मेला क्या,
युद्ध तो है कईयों के जीवन में,
....मैं यहाँ अकेला क्या(2),
उतार दिया खुद को जब रण में,
....तब संघर्षों के डरना क्या(2),
सर्वाधिकार अधीन है