अब समाज प्रौढ़, प्रशिक्षित,
और दक्ष हो गया है !!
वो भोलापन वो मासूमियत,
अब कहीं गुम हो गया है !!
पढ़-लिखकर अब लोग,
बदतमीज हो रहे हैं !!
समाज सेवा बला बनी अब,
लोग दावत में मिल रहे हैं !!
पनघट और पनहारन,
बीते कल की बात हुई अब !!
आपस का वो भाईचारा,
खतम सा ही हो गया है !!
जब तक हम अनपढ़ थे यारो,
रिश्तों की कदर अच्छी थी !!
समझ नहीं थी किताबों की पर,
अपनेपन की समझ अच्छी थी !!
कुछ तो बात थी उन दिनों की,
मच्छर की पहुँच नहीं थी !!
थे आबाद सब नदी तलैया,
खेतों में नमीं अच्छी थी !!
पढ़-लिखकर पाये हैं जितना,
उससे जियादा चौपट हुआ है !!
सभी पुराने फेंकिये मत,
भले नया ही सौ अपनायें !!
पोधे लगायें बाग में बेशक़,
बरगद पीपल भी बचायें !!
सर्वाधिकार अधीन है