वो गुज़ारा जमाना ये वर्तमान और कल
प्रकृति का नियम है नया पुराना कुछ नहीं...!
पूरब से उदय पश्चिम में अस्त कहाँ बदला
हर रोज नया है और कल भी पुराना नहीं है..!
जमाना जो था है वही है और आगे भी होगा
वक़्त चलता राही है इसका कोई ठिकाना नहीं है...!
यत्र तत्र सर्वत्र समय ही समय की परछाई हैं
मौन है शोर नहीं है कौन हैं यह दिखाना नहीं है...!
युग युगांतर सदियों से कितना समय बीत गया
जो लिखा वो है जो न लिखा वो जमाना नहीं है...!
समय को कोई कहाँ तोड़ पाया बांट सका हैं
एक धारा युगों से चल रही है जिसे जताना नहीं है...!
मानसिंह सुथार©️®️