जीवन क्या है?
सोचो तो एक छलावा ही है
जो प्रत्यक्ष होकर भी सच नहीं है ।
उस पवन की तरह
जिसे हम सुन सकते हैं महसूस कर सकते हैं,
पर देख नहीं सकते ।
उस विशाल समुन्दर के जैसे
जो चारों ओर जल से घिरा है ,पर हम उसे पी नहीं सकते ।
उस आकाश की तरह
जो छत बनकर हमें आसरा देता है ,पर हम उसे कभी छू नहीं सकते ।
उस अग्नि के जैसे
जो हमारे आस-पास विद्यमान है,पर उसे देख नहीं पाते ।
जीवन भी ऐसी ही भावनाओं का समुन्दर है ,बहती हवा की तरह है ,अग्नि और आकाश के जैसा है
जिसकी न गहराई नापी जा सकती है,न उसके बहने की कोई सीमा है
और शान्त रहे तो अमृत है अशान्त हो तो विष की तरह है ॥
-वन्दना सूद