तेरे होने पर दिन दिन नही लगता।
वक्त कट जाता वक्त सुहाना लगता।।
फूल का शाख पर आना लाजमी है
तेरा करीब में आना ज़माना लगता।।
जायका जिस्म का खुशबू सबाब की।
खुली बाहों में सिमट जाना लगता।।
आँखें ऊबती नही अपने ढंग से देखती।
पलक गिराना उठाना लुभावना लगता।।
इतना खोया हुआ रहता है 'उपदेश'।
सीने से चिपके रहना ख़ज़ाना लगता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद