वैसे तो गुज़र रहा ये साल है
उपहार भी तो साल का देता है
जो हुआ उसमें उसका थोड़ा क़सूर है
जो निमित है वो तो अवश्य होना है
सम्मान का हक़दार आज है
तभी तो नया कल आया है
नए दिन, नए ख़्याल, नई शरुआत है
शुक्रिया और माफ़ी को मान देते है
सलामे-ए-अदब यहीं तो संस्कार है
जो पूरी सृष्टि का अमूल्य अलंकार है
मुबारक क्षण जो साँसो का कारवां है
तभी तो हम जी रहे रौशन-ए-दरबार है