क्या बताऊँ, क्या-क्या सितम देखा है,
जो गुज़ारे से न गुज़रे वो गम देखा है।
जो करता रहता दुनिया वालों को खुश,
मैंने अकसर उसकी आँखें नम देखा है।
पकड़े खंज़र, ज़ख्म देख चेहरे पे हँसी,
दोमुँहों के हाथों में भी मरहम देखा है।
जो गलत है उसे खुल के लिखो गलत,
ऐसा करने वाले लोग तो कम देखा है।
उरूज के शबाब में अहं नहीं होता अब,
ज़िंदगी के पतझड़ का मौसम देखा है।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




