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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

देखा है

क्या बताऊँ, क्या-क्या सितम देखा है,
जो गुज़ारे से न गुज़रे वो गम देखा है।

जो करता रहता दुनिया वालों को खुश,
मैंने अकसर उसकी आँखें नम देखा है।

पकड़े खंज़र, ज़ख्म देख चेहरे पे हँसी,
दोमुँहों के हाथों में भी मरहम देखा है।

जो गलत है उसे खुल के लिखो गलत,
ऐसा करने वाले लोग तो कम देखा है।

उरूज के शबाब में अहं नहीं होता अब,
ज़िंदगी के पतझड़ का मौसम देखा है।
🖊️सुभाष कुमार यादव




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

Kya baat hai 👌 bahut khub✍️🙏

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद रीना जी।🙏🙏

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर रचना 👌👌🙏🙏

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद श्रेयसी जी।🙏🙏

उपदेश कुमार शाक्यावार said

वाह बहुत ख़ूब 🙏🙏

सुभाष कुमार यादव replied

धन्यवाद उपदेश सर जी।🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

हर शेर में जज़्बात की गहराई और दर्द की सच्चाई झलकती है — आपने जिंदगी के कांटों को बहुत बखूबी बयान किया है। अहंकार के पतझड़ में भी विनम्रता की बात करना, इस कविता को और भी खास बना देता है। आदरणीय यादव सर जी को सादर प्रणाम एवं प्रतिष्ठित रचनाकार सम्मान के लिए विशेष बधाइयाँ

सुभाष कुमार यादव replied

इतनी सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद सहित सादर प्रणाम आदरणीय पचौरी सर। 🙏🙏

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