शर्तें ज्यादा हैं, समर्पण कम है
रिश्तों की डोर, इसीलिए बेदम है
पढ़ा लिखा पुत्र, दिखता होनहार है
पिता की डांट,चुभता हरदम है
भाइयों के बीच, बंटवारे का दौड़ है
लोभ की स्पर्धा में, कोई नहीं कम है
बढ़ रही है आज, महत्वकांक्षाएं इतनी
सातों वचनों का, टूटता क़सम है
हरेक चेहरे पर, कुटिलता मुस्कातीं है
सभ्यता और संस्कृति की, आंखें पुरनम हैं।।
सर्वाधिकार अधीन है