हम कयामत लाना नहीं चाहते
इसीलिए सब्र किए हुए हैं
और वो कमबख़्त समझती है कि
हम कुछ कर नहीं सकते। (2)
अब वो क्या जाने कि
जो तूफ़ान खड़ा किया उसने हमारे दिल में,
हम उसे कैसे दबाए हुए हैं,
बस वो तो यही सोच उड़ रही है कि
हम कुछ कर नहीं सकते।।
वो हम पर ज़ुल्म ढहाए जा रही है
और हम चुप बैठे हुए हैं। (2)
अभी भी उसकी भलाई चाहते हैं
तभी तो कयामत नहीं लाने की सोच लिए हुए हैं ।।
कयामत जो ले आए हम तो फिर ये
कयामत से कयामत तक का सफ़र होगा (2)
और इस सफ़र को तय करना
उसके लिए मुमकिन ना होगा।
बस इसी इंतज़ार में रुके हुए हैं
कि शायद वो कयामत से पहले सुधर जाए
वरना कयामत के संग जीना
उसके लिए किसी सज़ा से कम ना होगा।।
कयामत और मेरे बीच का फासला ज्यादा नहीं
बस कयामत और मेरे बीच चाहत की कमी है (2)
कयामत इस दुनियां में लाना चाहते नहीं हम
वरना किसी की मजाल नहीं कि हमें दर्द दे सके।
बस इसीलिए रुके हैं
क्योंकि कयामत से परे रहना चाहते हैं हम,
कयामत को लाना नहीं चाहते हम।।
"रीना कुमारी प्रजापत"