कहते हो,
सफल लड़कियाँ मोहब्बत में नाकाम होती हैं…
और मैं सोचता हूँ,
क्या मोहब्बत सिर्फ़ समर्पण का नाम है?
क्या इसका मतलब सिर्फ़ झुकना है?
क्या इसमें अपने होने की इजाज़त नहीं?
तुम्हें एक ऐसी प्रेमिका चाहिए,
जो तुम्हारी ऊँचाई से नीचे देखे,
पर जो कंधे से कंधा मिलाकर चले,
वो तुम्हारी आँखों में सवाल बन जाती है।
तुम्हें शिकवा है कि वो बहुत आगे निकल जाती हैं,
पर क्या तुमने कभी उनके साथ चलने की हिम्मत की?
तुम्हें जलन होती है कि उनकी दुनिया तुम पर नहीं टिकी,
पर क्या तुमने उन्हें कभी अपनी दुनिया का सूरज बनाया?
सुनो,
ये जो तुम “अहंकारी” कहते हो,
ये जो तुम “स्वार्थी” कहते हो,
ये जो तुम “रिश्तों को नहीं निभा पातीं” कहते हो—
असल में ये उन लड़कियों का ग़ुनाह नहीं,
बल्कि तुम्हारी कायरता का ऐलान है।
क्योंकि वो चाहती थीं तुम्हें अपने संग चलाना,
पर तुमने चुना खुद को उनके आगे खड़ा करना।
वो चाहती थीं प्यार में बराबरी,
पर तुमने कहा “नहीं, तुम्हें नीचे झुकना होगा!”
और जब उन्होंने मुस्कुराकर इनकार कर दिया,
तो तुमने उनके नाम के आगे “असफल” लिख दिया।
पर सच तो ये है,
कि रिश्ते निभाने में तुम फेल हुए हो,
वो नहीं।