शब्दों के फूलों से गूँथु एक माला
सुख दुःख संवेदना कि हजारों धारा
कौन अपना कौन पराया
शब्दों को किसने है बुना
शब्दों के फूलों से गूँथु एक माला
सूना है दर्द के ग़मों में आँखे रोती ज्यादा
धरा की तपन में मेघा जैसे है रोता
आग लगी बुझे कैसे जो न हो जल धारा
समझ सके ऐसा नहीं कोई तराना
शब्दों के फूलों से गूँथु एक माला
कहते है जिसका दाना पानी हो जहाँ
वो कहीं से पहुँच जाता है वहाँ
मिलो दूर कैसे उगाया धान का दाना ?
ये पहेली को उलझाना नहीं आता
शब्दों के फूलों से गूँथु एक माला....